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येभि॑स्ति॒स्रः प॑रा॒वतो॑ दि॒वो विश्वा॑नि रोच॒ना । त्रीँर॒क्तून्प॑रि॒दीय॑थः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yebhis tisraḥ parāvato divo viśvāni rocanā | trīm̐r aktūn paridīyathaḥ ||

पद पाठ

येभिः॑ । ति॒स्रः । प॒रा॒ऽवतः॑ । दि॒वः । विश्वा॑नि । रो॒च॒ना । त्रीन् । अ॒क्तून् । प॒रि॒ऽदीय॑थः ॥ ८.५.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:5» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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शिव शंकर शर्मा

राजकर्तव्य कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजा और सभाध्यक्ष ! आप दोनों (तिस्रः+दिवः) तीन दिनों और (त्रीन्+अक्तून्) तीन रात्रियों में अर्थात् केवल तीन अहोरात्र में (विश्वानि) समस्त (रोचना) पाठशाला, न्यायालय और यज्ञशाला आदि दिव्य स्थानों के निकट (परावतः) अति दूरदेश से (येभिः) जिन अश्वों के द्वारा (परिदीयथः) पहुँच जाते हैं, उनके द्वारा हमारे निकट भी पहुँचें ॥८॥
भावार्थभाषाः - शीघ्रगामी रथ के द्वारा राजा प्रतिवर्ष सब रक्षितव्य स्थानों को देखे और देखकर यदि कहीं न्यूनता हो, तो उसको दूर करे ॥८॥
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आर्यमुनि

अब कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगी के यान का वैलक्षण्य कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (येभिः) जिन वाहनों द्वारा (तिस्रः, दिवः) तीन दिन और (त्रीन्, अक्तून्) तीन रात्रि में (परावतः) दूर-दूर के (विश्वानि, रोचना) सर्व दिव्यप्रदेशों में (परिदीयथः) प्राप्त करते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी के यान का वैलक्षण्य वर्णन किया गया है कि वह अपने शीघ्रगामी यान द्वारा तीन दिन और तीन रात्रि में सम्पूर्ण दिव्यप्रदेशों=देश-देशान्तरों में परिभ्रमण करके अपनी राजधानी को प्राप्त करते हैं ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

राजकर्तव्यमाचष्टे।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजानौ। तिस्रो दिवः=त्रीन् दिवसान्। त्रीन् अक्तून्=तिस्रो रात्रीश्च। एतावन्तं कालम्। अत्यन्तसंयोगे द्वितीया। विश्वानि=सर्वाणि। रोचना=रोचनानि दिव्यस्थानानि पाठशालादीनि। परावतः=दूरदेशादपि। येभिर्यैरश्वैः। परिदीयथः=परिगच्छथः। तैरश्वैरस्मानपि आगच्छतमित्यर्थः ॥८॥
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आर्यमुनि

अथ तदीययानवैलक्षण्यमुच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (येभिः) यैरश्वैः (तिस्रः, दिवः) त्रीन् दिवसान् (त्रीन्, अक्तून्) तिस्रो रात्रीश्च (परावतः) दूरस्थान् (विश्वानि, रोचना) सर्वान् दिव्यप्रदेशान् (परिदीयथः) व्याप्नुतः ॥८॥